गोरे गुलाम गोरे मालिक गोरे व्यापारी
गोरे गुलाम गोरे मालिक गोरे व्यापारी सामान के रूप में मानवी से भरा ब्रिटिश कार्गो अमरिका पहुंचता है । हजारो युवा स्त्री पुरुष और बच्चों को गुलाम के रूप में अमरिकनों को बेच दिया जाता है । या तो वे आदेश का पालन नहीं करते थे या तो विद्रोही थे । उन को गुलाम बनाकर सजा दी जा रही थी । गुलाम के मालिक अगर उन के आदेश का पालन नही होता था तो गुलामों के हाथ को आग में जला देते थे या कभी गुलाम को पूरा आग में डाल कर सजा देते थे । कुछ गुलाम जिंदा जल भी जाए तो नूकसान नही बाकी गुलाम सीधे चलने लगते हैं । मोदी-मित्र अमरिका और सभी भारतिय काले अंग्रेज नेताओं की कुतियारानी के देश की ये कहानी-करतूत है । दानव व्यापारियों की जेबों की पैदाईश इतिहासकारों ने खाली आफ्रिकन पिछडे भोले भाले गुलामों की बात ही लिखी है । समकक्ष प्रजा, अपने ही धर्म की प्रजा, अपने ही रंगरूप वाली आईरिश प्रजा को गुलाम बनाकर बेचा था वो बात उडा दी है । यहुदी व्यापारियों का गुलाम बन चुका ब्रिटन का राजा जेम्स ६, चार्ल्स १ और यहुदी प्यादा ओलिवर क्रोमवेल ने आयर्लेन्ड पर हमला किया था और सरेन्डर नही होती प्रजा को जहाजों में भर भर के गुलाम बना कर युरोप और अमरिकामें बेचा था । गोरे आयरिश गुलाम के व्यापार की शुरुआत राजा चार्ल ६ ने 30,000 आयरिश कैदियों को बेच कर की थी । 1625 में वेस्टैन्डीज में अंग्रेज प्रजा को बसाना था तो आयरिश राजनीतिक कैदियों को पहले उन अंग्रेजों को बेचा था जो वहां सेटल हो रहे थे । 1600 सदी के मध्य तक, आयरिश जनता को एंटीगुआ और मोंटेसेराट में बेचा गया । उस समय, मोंटेसेराट की कुल आबादी का 70% भाग आयरिश गुलाम थे । थोडे ही समय में दानव समाजी व्यापारियों के लिए आयरलैंड एक सब से बडा सोर्स बन गया लाईवस्टोक का (मानव पशुधन) । हकिकत में तो सब से पहले गुलाम तो गोरे थे । आफ्रिकन कालों पर बाद में ध्यान गया । 1641 से 1652 तक, 500,000 से अधिक आयरिश को मार दिया और 300,000 को गुलाम बना कर बेच दिया गया । आयरलैंड की जनसंख्या एक ही दशक में 1,500,000 से गिर कर 600,000 तक रह गई थी । आइरिश पुरूषों को अपने परिवार से छुडाकर अलग से बेचा गया । निराधार महिलाओं और बच्चों की मंडी लगाई और उंची किमत पर निलामी कर दी । 1650 के दरम्यान 100,000 आइरिश बच्चे 10 से 14 साल के थे, उनको उनके मांबाप से छीन कर वेस्ट इन्डीज, वर्जिनिया और न्यु इन्ग्लेन्ड में गुलाम के रूप में बेच दिया गया था । 52,000 आइरिश, ज्यादातर महिला और बच्चे बार्बाडोस में बेचा गया था । 1656 में क्रोमवेल ने और 30,000 आइरिश स्त्री पुरुष को बहुत उंची किमत पर जमैका के अंगेज वसाहतियों को बेचा था । बहुत से गोरे इसाईयों को ये बात हजम नही होती है कि उनके ही जातभाईयों की यह दशा हुई थी । वो आयरिश गुलाम के लिए “अनुबंधित नौकर” जैसे शब्दों से मन मना लेते हैं । अपने गोरेपन की, अपनी इसाईयत की इज्जत रखने की कोशीश करते हैं और दुनिया की श्रेष्ट प्रजा होने का भ्रम बनाए रखते हैं । लेकिन आईरिश गुलाम 17 वीं और 18 वीं शताब्दी में पशु से ज्यादा कुछ नहीं थे । आफ्रिकन गुलामों का व्यापार उस समय अभी शुरु ही हुआ था । अफ्रीकी गुलाम (£ 50 स्टर्लिंग) बहुत महंगे थे । आयरिश गुलाम सस्ते (£ 5 स्टर्लिंग) में मिलते थे । एक गुलाम को मार देना मालिक के लिए कोइ गुनाह नही था । आइरिश गुलाम को मारे तो कम नूकसान आफ्रिकी गुलाम को मारे तो आर्थिक झटका लगता था । ( काला इसलिए मेंहंगा था क्यों कि सखत धुप में भी कडी मेहनत मजदूरी कर सकता था ।) अंग्रेजी मालिकों ने बहुत जल्द ही अपने स्वयं के व्यक्तिगत सुख के लिए और अधिक से अधिक लाभ के लिए आयरिश महिलाओं से यौन संबंध द्वारा प्रजनन शुरू किया । गुलाम के बच्चों को गुलाम ही बनना होता था तो इस तरह अपने लिए खूद गुलाम पैदा करने लगे । काले गुलाम सस्ते में पैदा करवाने के लिए आइरिश महिला गुलाम और काले पुरुष गुलाम द्वरा वर्ण संकर गुलाम पैदा करवाने लगे । बाजार से काला गुलाम खरीदने से यही तरिका अच्छा था, सस्ता था । उत्पादन बढाने के लिए अफ्रीकी पुरुषों के साथ 12 साल की आइरिश लडकियों से भी प्रजनन करवाया जाता था । इन नए “चितकबरे रंग” के गुलाम आईरिश पशुओं की तुलना में उच्च कीमत पर बीकते थे । अफ्रीकी पुरुषों के साथ आयरिश महिलाओं का यह संकरण कुछ दशकों के लिए चला । लेकिन 1681 में, कानून पारित किया गया कि इस तरह “गुलामों की बिक्री के लिए, गुलामो के उत्पादन के उद्देश्य के लिए अफ्रीकी गुलाम पुरुषों के साथ आयरिश गुलाम महिलाओं का संभोग कराना अनैतिक है ।” गुलामों की एक बडी कंपनी को अपने व्यापार में घाटा जा रहा था तो गुलामो का उत्पादन बंद कराना था, वरना उन दानवों के लिए नैतिक क्या और अनैतिक क्या ! इंग्लैंडने १०० साल तक हजारों जहाज भर के अपने पडोसी देश आयर्लेन्ड की प्रजा को गुलाम बना कर अलग अलग देशों में बेचा था । आफ्रीकी काले और आइरिश गोरे गुलामों पर जो अत्याचार हुए उसे सुनकर ही मानवीयों का खून खौलने लगे ऐसा घोर अत्याचार था । एक समय पर तो जहाज में भोजन खतम हो रहा था तो जहाजियों के लिए खाना बचा रहे इसलिए एक ब्रिटिश जहाज से 1,302 गुलामों को टलांटिक महासागर फैंक दिया था । आप यदी वेस्टइंडीज यात्रा पर जाओ तो उन यातनाओं की गवाही के रूप में ब्राउन चमडी वाले लोग मिल जाएन्गे जो उन आफ्रिकी और आईरिश गुलामों के संयोजन से पैदा हुए थे । 1839 में आखिर ब्रिटन ने खूद इस शैतानी धंधे पर रोक लगाने का ऑर्डर दे दिया था । तो स्मगलर्स पैदा हो गए । उनको रोकने के लिए धीरे धीरे आइरिश प्रजा के दुःख दूर करनेवाला कानून ही बना दिया । कोइ समजता है कि गुलाम मात्र आफ्रिकी लोग ही रहे हैं तो वो मात्र भूल है । गुलाम प्रजा और उसके राक्षस मालिक इस तरह है । १- हिन्दु रोमन राजा और हिन्दु गुलाम । ( उस समय और धर्म की प्रजा नही थी । ) २- आफ्रिका के काले गुलाम (रोयल आफ्रिकन कंपनी) ३- उत्तर भारत के हिन्दु गुलाम ( मुस्लिम शासक) ४- मध्य और पूर्व भारत के गीरमिटिये भारतिय गुलाम (इस्ट इन्डिया कंपनी ) ५- आयलेन्ड के गोरे इसाई गुलाम ( ब्रिटन) । दुसरी कक्षा की सामुहिक गुलामी । रसिया, चीन और सभी साम्यवादी देशों की जनता । मालिक रोथ्चिल्ड और दानव मित्रमंडल के प्यादे साम्यवादीयों की सेना । तिसरी कक्षा की गुलामी आजादी के नाम पर जगत के देशों के नागरिकों पर थोपी गई लोकशाही देशों की जनता । मालिक वही रोथ्चिल्ड और दानव मित्रमंडल की संस्था युनो । बडे प्यार से, थुंक लगा लगा कर, सहला सहला कर आराम से प्रथम कक्षा के गुलाम बनाने की तैयारी में । कोइ ये भी समजेगा की गुलाम प्रथा तो खतम हो गई, अब क्या रोना ! ये “अब क्या रोना !” जैसे उद्गार ही गुलामों के मुह से निकल सकते हैं । गुलामी का स्वरूप बदल गया है । दानव व्यापारी गुलामों के खून पसीने की कमाई पर तगडे हो गए हैं । आज पूरी दुनिया पर कबजा जमा लिया है । हर देश में राज करने के लिए अपने प्यादे क्रोमवेल बैठा दिए हैं । और ये नये क्रोमवेल ही वापस सोलहवीं सदी के हालात खडे करने वाले हैं । आयरिश पूरूषों को तो जोर जबरी उन के घरबार छुडा कर दुसरे देशों में बेच दिया था लेकिन ये लोग तो कानून के हथियार से, फॅशन और आजादी के वार से प्रेम पूर्वक घरबार छुडवा रहे हैं । महिला कहीं और दानव कंपनी की गुलाम, पूरुष कोइ दुसरी दानव कंपनी का गुलाम । बच्चों की फिकर करनेवाले दानव प्यादे अवॉर्ड के बख्तर पहन कर मैदान में आ ही चुके हैं ।” />
सामान के रूप में मानवी से भरा ब्रिटिश कार्गो अमरिका पहुंचता है । हजारो युवा स्त्री पुरुष और बच्चों को गुलाम के रूप में अमरिकनों को बेच दिया जाता है ।
या तो वे आदेश का पालन नहीं करते थे या तो विद्रोही थे । उन को गुलाम बनाकर सजा दी जा रही थी । गुलाम के मालिक अगर उन के आदेश का पालन नही होता था तो गुलामों के हाथ को आग में जला देते थे या कभी गुलाम को पूरा आग में डाल कर सजा देते थे । कुछ गुलाम जिंदा जल भी जाए तो नूकसान नही बाकी गुलाम सीधे चलने लगते हैं ।
मोदी-मित्र अमरिका और सभी भारतिय काले अंग्रेज नेताओं की कुतियारानी के देश की ये कहानी-करतूत है ।
दानव व्यापारियों की जेबों की पैदाईश इतिहासकारों ने खाली आफ्रिकन पिछडे भोले भाले गुलामों की बात ही लिखी है । समकक्ष प्रजा, अपने ही धर्म की प्रजा, अपने ही रंगरूप वाली आईरिश प्रजा को गुलाम बनाकर बेचा था वो बात उडा दी है । यहुदी व्यापारियों का गुलाम बन चुका ब्रिटन का राजा जेम्स ६, चार्ल्स १ और यहुदी प्यादा ओलिवर क्रोमवेल ने आयर्लेन्ड पर हमला किया था और सरेन्डर नही होती प्रजा को जहाजों में भर भर के गुलाम बना कर युरोप और अमरिकामें बेचा था ।
गोरे आयरिश गुलाम के व्यापार की शुरुआत राजा चार्ल ६ ने 30,000 आयरिश कैदियों को बेच कर की थी । 1625 में वेस्टैन्डीज में अंग्रेज प्रजा को बसाना था तो आयरिश राजनीतिक कैदियों को पहले उन अंग्रेजों को बेचा था जो वहां सेटल हो रहे थे ।
1600 सदी के मध्य तक, आयरिश जनता को एंटीगुआ और मोंटेसेराट में बेचा गया । उस समय, मोंटेसेराट की कुल आबादी का 70% भाग आयरिश गुलाम थे ।
थोडे ही समय में दानव समाजी व्यापारियों के लिए आयरलैंड एक सब से बडा सोर्स बन गया लाईवस्टोक का (मानव पशुधन) । हकिकत में तो सब से पहले गुलाम तो गोरे थे । आफ्रिकन कालों पर बाद में ध्यान गया ।
1641 से 1652 तक, 500,000 से अधिक आयरिश को मार दिया और 300,000 को गुलाम बना कर बेच दिया गया । आयरलैंड की जनसंख्या एक ही दशक में 1,500,000 से गिर कर 600,000 तक रह गई थी ।
आइरिश पुरूषों को अपने परिवार से छुडाकर अलग से बेचा गया । निराधार महिलाओं और बच्चों की मंडी लगाई और उंची किमत पर निलामी कर दी ।
1650 के दरम्यान 100,000 आइरिश बच्चे 10 से 14 साल के थे, उनको उनके मांबाप से छीन कर वेस्ट इन्डीज, वर्जिनिया और न्यु इन्ग्लेन्ड में गुलाम के रूप में बेच दिया गया था । 52,000 आइरिश, ज्यादातर महिला और बच्चे बार्बाडोस में बेचा गया था ।
1656 में क्रोमवेल ने और 30,000 आइरिश स्त्री पुरुष को बहुत उंची किमत पर जमैका के अंगेज वसाहतियों को बेचा था ।
बहुत से गोरे इसाईयों को ये बात हजम नही होती है कि उनके ही जातभाईयों की यह दशा हुई थी । वो आयरिश गुलाम के लिए “अनुबंधित नौकर” जैसे शब्दों से मन मना लेते हैं । अपने गोरेपन की, अपनी इसाईयत की इज्जत रखने की कोशीश करते हैं और दुनिया की श्रेष्ट प्रजा होने का भ्रम बनाए रखते हैं । लेकिन आईरिश गुलाम 17 वीं और 18 वीं शताब्दी में पशु से ज्यादा कुछ नहीं थे ।
आफ्रिकन गुलामों का व्यापार उस समय अभी शुरु ही हुआ था । अफ्रीकी गुलाम (£ 50 स्टर्लिंग) बहुत महंगे थे । आयरिश गुलाम सस्ते (£ 5 स्टर्लिंग) में मिलते थे । एक गुलाम को मार देना मालिक के लिए कोइ गुनाह नही था । आइरिश गुलाम को मारे तो कम नूकसान आफ्रिकी गुलाम को मारे तो आर्थिक झटका लगता था । ( काला इसलिए मेंहंगा था क्यों कि सखत धुप में भी कडी मेहनत मजदूरी कर सकता था ।)
अंग्रेजी मालिकों ने बहुत जल्द ही अपने स्वयं के व्यक्तिगत सुख के लिए और अधिक से अधिक लाभ के लिए आयरिश महिलाओं से यौन संबंध द्वारा प्रजनन शुरू किया । गुलाम के बच्चों को गुलाम ही बनना होता था तो इस तरह अपने लिए खूद गुलाम पैदा करने लगे ।
काले गुलाम सस्ते में पैदा करवाने के लिए आइरिश महिला गुलाम और काले पुरुष गुलाम द्वरा वर्ण संकर गुलाम पैदा करवाने लगे । बाजार से काला गुलाम खरीदने से यही तरिका अच्छा था, सस्ता था । उत्पादन बढाने के लिए अफ्रीकी पुरुषों के साथ 12 साल की आइरिश लडकियों से भी प्रजनन करवाया जाता था । इन नए “चितकबरे रंग” के गुलाम आईरिश पशुओं की तुलना में उच्च कीमत पर बीकते थे ।
अफ्रीकी पुरुषों के साथ आयरिश महिलाओं का यह संकरण कुछ दशकों के लिए चला । लेकिन 1681 में, कानून पारित किया गया कि इस तरह “गुलामों की बिक्री के लिए, गुलामो के उत्पादन के उद्देश्य के लिए अफ्रीकी गुलाम पुरुषों के साथ आयरिश गुलाम महिलाओं का संभोग कराना अनैतिक है ।” गुलामों की एक बडी कंपनी को अपने व्यापार में घाटा जा रहा था तो गुलामो का उत्पादन बंद कराना था, वरना उन दानवों के लिए नैतिक क्या और अनैतिक क्या !
इंग्लैंडने १०० साल तक हजारों जहाज भर के अपने पडोसी देश आयर्लेन्ड की प्रजा को गुलाम बना कर अलग अलग देशों में बेचा था । आफ्रीकी काले और आइरिश गोरे गुलामों पर जो अत्याचार हुए उसे सुनकर ही मानवीयों का खून खौलने लगे ऐसा घोर अत्याचार था । एक समय पर तो जहाज में भोजन खतम हो रहा था तो जहाजियों के लिए खाना बचा रहे इसलिए एक ब्रिटिश जहाज से 1,302 गुलामों को टलांटिक महासागर फैंक दिया था ।
आप यदी वेस्टइंडीज यात्रा पर जाओ तो उन यातनाओं की गवाही के रूप में ब्राउन चमडी वाले लोग मिल जाएन्गे जो उन आफ्रिकी और आईरिश गुलामों के संयोजन से पैदा हुए थे ।
1839 में आखिर ब्रिटन ने खूद इस शैतानी धंधे पर रोक लगाने का ऑर्डर दे दिया था । तो स्मगलर्स पैदा हो गए । उनको रोकने के लिए धीरे धीरे आइरिश प्रजा के दुःख दूर करनेवाला कानून ही बना दिया ।
कोइ समजता है कि गुलाम मात्र आफ्रिकी लोग ही रहे हैं तो वो मात्र भूल है ।
गुलाम प्रजा और उसके राक्षस मालिक इस तरह है ।
१- हिन्दु रोमन राजा और हिन्दु गुलाम । ( उस समय और धर्म की प्रजा नही थी । )
२- आफ्रिका के काले गुलाम (रोयल आफ्रिकन कंपनी)
३- उत्तर भारत के हिन्दु गुलाम ( मुस्लिम शासक)
४- मध्य और पूर्व भारत के गीरमिटिये भारतिय गुलाम (इस्ट इन्डिया कंपनी )
५- आयलेन्ड के गोरे इसाई गुलाम ( ब्रिटन) ।
दुसरी कक्षा की सामुहिक गुलामी ।
रसिया, चीन और सभी साम्यवादी देशों की जनता । मालिक रोथ्चिल्ड और दानव मित्रमंडल के प्यादे साम्यवादीयों की सेना ।
तिसरी कक्षा की गुलामी
आजादी के नाम पर जगत के देशों के नागरिकों पर थोपी गई लोकशाही देशों की जनता । मालिक वही रोथ्चिल्ड और दानव मित्रमंडल की संस्था युनो । बडे प्यार से, थुंक लगा लगा कर, सहला सहला कर आराम से प्रथम कक्षा के गुलाम बनाने की तैयारी में ।
कोइ ये भी समजेगा की गुलाम प्रथा तो खतम हो गई, अब क्या रोना ! ये “अब क्या रोना !” जैसे उद्गार ही गुलामों के मुह से निकल सकते हैं । गुलामी का स्वरूप बदल गया है । दानव व्यापारी गुलामों के खून पसीने की कमाई पर तगडे हो गए हैं । आज पूरी दुनिया पर कबजा जमा लिया है । हर देश में राज करने के लिए अपने प्यादे क्रोमवेल बैठा दिए हैं । और ये नये क्रोमवेल ही वापस सोलहवीं सदी के हालात खडे करने वाले हैं । आयरिश पूरूषों को तो जोर जबरी उन के घरबार छुडा कर दुसरे देशों में बेच दिया था लेकिन ये लोग तो कानून के हथियार से, फॅशन और आजादी के वार से प्रेम पूर्वक घरबार छुडवा रहे हैं । महिला कहीं और दानव कंपनी की गुलाम, पूरुष कोइ दुसरी दानव कंपनी का गुलाम । बच्चों की फिकर करनेवाले दानव प्यादे अवॉर्ड के बख्तर पहन कर मैदान में आ ही चुके हैं