ये भारत के मराठा इतिहास की सबसे दिलचस्प प्रेम कहानी है। हालांकि, एक-दूसरे से मिलने से लेकर मौत तक, इतिहास में दोनों के बारे में कई तरह की बातें हैं। लेकिन सभी कहानियों में एक बात समान है। वह है इन दोनों के बीच की बेपनाह मोहब्बत। जी हां, यह कहानी बाजीराव-मस्तानी की ही है।
मस्तानी एक हिंदु महाराजा, महाराजा छत्रसाल बुंदेला की बेटी थीं। उनकी मां रुहानी बाई हैदराबाद के निजाम के राज दरबार में नृत्यांगना थीं। महराजा छत्रसाल ने बुंदलेखंड में पन्ना राज्य की स्थापना की थी। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि मस्तानी को महाराजा छत्रसाल ने गोद लिया था। मस्तानी की परवरिश मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले से 15 किमी दूर मऊ साहनिया में हुई थी। इस जगह पर मस्तानी के नाम पर एक मस्तानी महल भी बना हुआ है।
मस्तानी इसी महल में रहतीं और डांस करती थीं। मस्तानी को राजनीति, युद्धकला, तलवारबाजी और घर के कामों का पूरा प्रशिक्षण मिला हुआ था। मस्तानी के बारे में कहा जाता है कि वह बहुत ही खूबसूरत थीं। उन्हें अपनी मां की ही तरह नृत्य में कुशलता हासिल थी। कहते हैं कि मस्तानी ने बाजीराव की मृत्यु के बाद जहर खाकर आत्महत्या कर ली थी। ुछ लोग कहते हैं कि उन्होंने अपनी अंगूठी में मौजूद जहर को पी लिया था। वहीं कुछ लोग मानते हैं कि वह बाजीराव की चिता में कूद कर सती हो गई थीं। उनकी मौत सन 1740 में बताई जाती है।
300 साल पहले, सन 1700 में छत्रपति शिवाजी के पौत्र शाहूजी महाराज ने बाजीराव के पिता बालाजी विश्वनाथ की मौत के बाद उसे अपने राज्य का पेशवा यानी प्रधानमंत्री नियुक्त किया। 20 साल की उम्र में कमान संभालने वाले बाजीराव ने अपने शासन काल में 41 युद्ध लड़े और सभी में जीत हासिल की। बचपन से बाजीराव को घुड़सवारी, तीरंदाजी, तलवार, भाला, बनेठी, लाठी आदि चलाने का शौक था। पेशवा बनने के बाद अगले बीस वर्षों तक बाजीराव मराठा साम्राज्य को बढ़ाते चले गए। इसके लिए उन्हें अपने दुश्मनों से लगातार लड़ाईयां करनी पड़ी। अपनी वीरता, अपनी नेतृत्व क्षमता व कौशल युद्ध योजना द्वारा यह वीर हर लड़ाई को जीतता गया।
विश्व इतिहास में बाजीराव पेशवा ऐसा अकेला योद्धा माना जाता है जो कभी नहीं हारा। एक बड़ी बात ये भी थी कि बाजीराव युद्ध मैदान में अपनी सेना को हमेशा प्रेरित करने का काम करते थे। बाजीराव की सेनाएं भगवा झंडों के साथ मैदान में उतरती थी और उसकी जुबां पर ‘हर हर महादेव’ का नारा रहता था। बाजीराव में राजनीतिक और सैनिक नेतृत्व की अदम्य क्षमता भरी हुई थी। इसी वजह से वह मराठा साम्राज्य को डक्कन से लेकर उत्तर भारत के हिस्से तक बढ़ा सके, जहां शासक शाहू 1 का शासन हुआ। युद्धक्षेत्र की तरह ही बाजीराव का निजी जीवन भी चर्चा के केंद्र में रहा। एक विशुद्ध हिंदू होने के बावजूद, बाजीराव ने दो बार शादी की थी। बाजीराव की पहली पत्नी का नाम काशीबाई और दूसरी मस्तानी थी।
सन 1727-28 के दौरान महाराजा छत्रसाल के राज्य पर मुसलमान शासक मोहम्मद खान बंगश ने हमला बोल दिया था। बताया जाता है कि खुद पर खतरा बढ़ता देख छत्रसाल ने बाजीराव को एक गुप्त संदेश भिजवाया। इस संदेश में छत्रसाल ने बाजीराव से मदद की मांग की। बाजीराव ने छत्रसाल की मदद की और मोहम्मद बंगश से उनका साम्राज्य बचा लिया। छत्रसाल, बाजीराव की मदद से काफी खुश हुए और खुद को उनका कर्जदार समझने लगे। इस कर्ज को उतारने के लिए छत्रसाल ने अपनी बेटी मस्तानी, बाजीराव को उपहार में दे दी थी। बाजीराव पहली ही नजर में मस्तानी को दिल दे बैठे थे। उन्होंने मस्तानी को अपनी दूसरी पत्नी बनाया। मस्तानी से पहले उनका विवाह काशीबाई नामक महिला हो चुका था।
मस्तानी ने बाजीराव के दिल में एक विशेष स्थान बना लिया था। उसने अपने जीवन में हिंदू स्त्रियों के रीति रिवाजों को अपना लिया था। बाजीराव से संबंध के कारण मस्तानी को भी अनेक दुख झेलने पड़े पर बाजीराव के प्रति उसका प्रेम अटूट था। मस्तानी का सन 1734 में एक बेटा हुआ। उसका नाम शमशेर बहादुर रखा गया। बाजीराव ने कालपी और बांदा की सूबेदारी उसे दी, शमशेर बहादुर ने पेशवा परिवार की बड़े लगन और परिश्रम से सेवा की। सन 1761 में शमशेर बहादुर मराठों की ओर से लड़ते हुए पानीपत के मैदान में मारा गया था।
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मध्य प्रदेश में इंदौर के पास स्थित बाजीराव की समाधि |
1739 की शुरुआत में पेशवा बाजीराव और मस्तानी का रिश्ता तोडऩे के लिए लोगों ने असफल प्रयत्न किया गया। कुछ दिनों बाद बाजीराव को किसी काम से पूना छोडऩा पड़ा। मस्तानी पेशवा के साथ नहीं जा सकी। चिमाजी अप्पा और नाना साहब ने एक योजना बनाई। उन्होंने मस्तानी को पर्वती बाग (पूना) में कैद किया। बाजीराव को जब यह खबर मिली तो वे अत्यंत दुखी हुए। वे बीमार पड़ गए। इसी बीच मस्तानी कैद से बचकर बाजीराव के पास 4 नवम्बर 1739 ई0 को पटास पहुंची।
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महाराष्ट्र के पुणे में स्थित मस्तानी की कब्र। मस्तानी के पहुंचने से बाजीराव निश्चिंत हुए पर यह स्थिति अधिक दिनों तक न रह सकी। शीघ्र ही पुरंदरे, काका मोरशेट तथा अन्य व्यक्ति पटास पहुंचे। उनके साथ बाजीराव की मां राधाबाई और उनकी पत्नी काशीबाई भी वहां पहुंची। उन्होंने मस्तानी को समझा बुझाकर लाना आवश्यक समझा। मस्तानी पूना लौटी। 1740 के आरंभ में बाजीराव नासिरजंग से लडऩे के लिए निकल पड़े और गोदावरी नदी को पारकर शत्रु को हरा दिया। बाजीराव बीमार पड़े और 28 अप्रैल 1740 को उनकी मृत्यु हो गई। मस्तानी बाजीराव की मृत्यु का समाचार पाकर बहुत दुखी हुई और बाजीराव की चिता पर सती हो गई थी। हालांकि, मस्तानी के जीवन और मृत्यु को लेकर बहुत से तर्क दिए जाते हैं। आज भी पूना से 20 मील दूर पाबल गांव में मस्तानी का मकबरा उनके त्याग दृढ़ता तथा अटूट प्रेम का स्मरण दिलाता है। मध्य प्रदेश में इंदौर शहर के पास पेशवा बाजीराव की समाधि है, जो करीब तीन सौ साल पहले उनकी मौत के बाद बनाई गई थी और बाजीराव की इस समाधि से करीब 600 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र के पुणे में मस्तानी की कब्र है। वो मस्तानी जिसकी मोहब्बत में बाजीराव ने धर्म का फासला भी खत्म कर दिया। खास बात ये है कि बाजीराव और मस्तानी की ये समाधियां ही उनकी उस बेमिसाल मोहब्बत की गवाह भी है जिसकी कहानियां मुंह जुबानी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचती रही है। |
फोटो- मस्तानी महल की तस्वीर।