हिन्दुओ में अस्पर्शता मुगलों की देन है? कुछ लोगों का मानना है कि भारत …में इस्लाम का प्रचार-प्रसार बहुत ही सौहार्दपूर्ण वातावरण में हुआ है. उनका यह भी कहना है की हिंदू समाज में छुआछात के कारण भारत में हिन्दुओं ने बड़ी मात्रा में इस्लाम को अपनाया. उपर्युक्त कथन के विपरीत, सूर्य जैसा जगमगाता हुआ सच तो यह है कि भारतके लोगों का इस्लाम के साथ पहला-पहला परिचय युद्ध के मैदानमें हुआ था(उदहारण: मुहम्मद बिन कासिम जिसने सिंध पर सबसे पहले ७११ में आक्रमण कियाथा) हिन्दुओं में आदिकाल से गोत्र व्यवस्था रही है, वर्ण व्यवस्था भी थी, परन्तु जातियाँ नहींथीं. वेद सम्मत वर्ण व्यवस्था समाज में विभिन्न कार्यों के विभाजन की दृष्टि से लागू थी. यह व्यवस्था जन्म पर आधारित न होकर सीधे-सीधे कर्म (कार्य) पर आधारित थी. कोई भी वर्ण दूसरे को ऊँचा या नीचा नहीं समझता था. उदारणार्थ- अपने प्रारंभिक जीवन में शूद्र कर्म में प्रवृत्त वाल्मीकि जी जब अपने कर्मों में परिवर्तन के बाद पूजनीय ब्राह्मणों के वर्ण में मान्यता पा गए तो वे तत्कालीन समाज में महर्षि के रूप में प्रतिष्ठित हुए. श्री राम सहित चारों भाइयों के विवाह के अवसर पर जब जनकपुर में राजा दशरथ ने चारों दुल्हनों की डोली ले जाने से पहले देश के सभी प्रतिष्ठित ब्राह्मणों को दान और उपहार देने के लिए बुलाया था, तो उन्होंने श्री वाल्मीकि जी को भी विशेष आदर के साथ आमंत्रित किया था. संभव है, हिंदू समाज में मुगलों के आगमन से पहले ही जातियाँ अपनेअस्तित्व में आ गयी हों,परन्तु भारत की वर्तमान जातिप्रथा में छुआछूत का जैसा घिनौना रूप अभी देखने में आताहै, वह निश्चित रूप से मुस्लिम आक्रान्ताओं की ही देन है. कैसे? देखिए-आरम्भ से ही मुसलमानों के यहाँ पर्दा प्रथा अपने चरम पर रही है. यह भी जगजाहिर है कि मुसलमान लड़ाकों के कबीलों में पारस्परिक शत्रुता रहा करती थी. इस कारण, कबीले के सरदारों व सिपाहियों की बेगमे कभी भी अकेली कबीले से बाहर नहीं निकलती थीं. अकेले बाहर निकलने पर इन्हें दुश्मन कबीले के लोगों द्वारा उठा लिए जाने का भय रहता था. इसलिए, ये अपना शौच का काम भी घर में ही निपटाती थीं. उस काल में कबीलों में शौच के लिए जो व्यवस्था बनी हुई थी, उसके अनुसार घर के भीतर ही शौच करने के बाद उस विष्टा कोहाथ से उठाकर घर से दूर कहीं बाहर फेंककर आना होता था. सरदारों ने इस काम के लिए अपने दासों को लगा रखा था. जो व्यक्ति मैला उठाने के काम के लिए नियुक्त था, उससे फिर खान-पान सेसम्बंधित कोईअन्य काम नहीं करवाते थे. स्वाभाविक रूप से कबीले के दासो को ही विष्ठा(टट्टी) उठाने वाले काम में लगाया जाता था. कभी-कभी दूसरे लोगों को भी यह काम सजा केतौर पर करना पड़ जाता था. इस प्रकार, वह मैला उठाने वाला आदमीइस्लामी समाज में पहले तो निकृष्ट/नीच घोषित हुआ और फिर एकमात्र विष्टा उठाने के हीकाम पर लगे रहने के कारण बाद में उसेअछूत घोषित कर दिया गया. वर्तमान में, हिंदू समाज में जाति-प्रथा और छूआछात का जो अत्यंत निंदन��य रूप देखने में आता है, वह इस समाज को मुस्लिम आक्रान्ताओं की ही देन है. मुसलमानों के आने से पहले घर में शौच करने और मैला ढोने की परम्परा सनातन हिंदू समाज में थी ही नहीं. जब हिंदू शौच के लिए घर से निकल करकिसी दूर स्थान पर ही दिशा मैदानके लिए जाया करते थे, तो विष्टा उठाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता. जब विष्टा ढोने का आधार ही समाप्त हो जाता है, तो हिंदू समाज में अछूत कहाँ से आ गया? हिन्दुओं के शास्त्रों में इन बातों का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि व्यक्तिको शौच के लिए गाँव के बाहर किस दिशा में कहाँजाना चाहिए तथा कब, किस दिशा की ओर मुँह करके शौच के लिएबैठना चाहिए आदि-आदि. प्रमाण- नैऋत्यामिषुविक्षेपमतीत्याभ्यधि कमभुवः I (पाराशरo) ” यदि खुली जगह मिले तो गाँव से नैऋत्यकोण (दक्षिण और पश्चिम केबीच) की ओर कुछ दूर जाएँ.” दिवा संध्यासु कर्णस्थब्रह्मसूत्र उद्न्मुखः I कुर्यान्मूत्रपुरीषे तु रात्रौच दक्षिणामुखः II (याज्ञ o १ I १६,बाधूलस्मृ o ८) “शौच के लिए बैठते समय सुबह, शाम और दिन में उत्तर की ओर मुँह करें तथा रात में दक्षिण की ओर मुसलमानों के अत्याचारों के खिलाफ लड़ने वाले क्षत्रिय वीरों की तीन प्रकार से अलग-अलग परिणतियाँ हुईं. पहली परिणति- जिन हिंदू वीरों को धर्म के पथ पर लड़ते-लड़ते मार गिराया गया, वे वीरगति को प्राप्त होकर धन्य हो गए. उनके लिए सीधे मोक्ष के द्वार खुल गए. दूसरी परिणति- जो मौत से डरकर मुसलमान बन गए, उनकी चांदी हो गई. तीसरी परिणति- यह तीसरे प्रकार की परिणति उन हिंदू क्षत्रियों की हुई, जिन्हें युद्ध में मारा नहीं गया, बल्कि कैद कर लिया गया. मुसलमानों ने उनसे इस्लाम कबूलवाने के लिए उन्हें घोर यातनाएँ दीं. चूँकि, अपने उदात्तजीवन में उन्होंने असत्य के आगे कभी झुकना नहीं सीखा था, इसलिए सब प्रकार के जुल्मों को सहकर भीउन्होंने इस्लाम नहीं कबूला. अपने सनातन हिंदू धर्म के प्रति अटूट विश्वास ने उन्हें मुसलमानन बनने दिया और परिवारों का जीवनघोर संकट में था, अतः उनके लिए अकेले-अकेले मरकर मोक्ष पा जानाभी इतना सहज नहीं रह गया था. ऐसी विकट परिस्थिति में मुसलमानों ने उन्हेंजीवन दान देने के लिए उनके सामने एक घृणितप्रस्ताव रख दिया तथा इस प्रस्ताव के साथ एक शर्त भी रख दी गई. उन्हें कहा गया कि यदि वे जीना चाहते हैं, तो मुसलमानों केघरों से उनकी विष्टा (टट्टी) उठाने का काम करना पड़ेगा. उनके परिवारजनों का काम भी साफ़-सफाईकरना और मैला उठाना ही होगा तथा उन्हें अपनi जीवन-यापन के लिए सदा-सदा के लिए केवल यही एक काम करने कि अनुमति होगी. अब वे मैला उठाने वाले लोग हिन्दुओं के घरों में से भी मैला उठाने लगे. इस प्रकार, किसी भलेसमय के राजे-रजवाड़े मुस्लिम आक्रमणों के कुचक्र मेंफंस जाने से अपने धर्म की रक्षा करने के कारण पूरे समाज के लिए ही मैला ढोने वाले अछूत और नीच बन गए. अतः हमे इन अछुत कहे जाने वाले वीरो को धर्म मे सम्मानित स्थान देना चाहि.
I am thinking same way since many years but today you confirmed it. Thanks for it and i m 100% agreed. Same way due to Muslim Cruelty and barbarianism the Sati Pratha and Child marriage came as a solution those times to save daughters from kidnappings. Also so many other bad things came to Hindus for survival.
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