गुरूत्वकर्षण शक्ति की खोज न्यूटन ने नहीं श्री भास्कराचार्य जी ने 500-670 वर्ष पूर्व की थी
कथा इस प्रकार हैं :-
“पिताजी, यह पृथ्वी, जिस पर हम निवास करते हैं, किस पर टिकी हुई है?”
लीलावती ने शताब्दियों पूर्व यह प्रश्न अपने पिता भास्कराचार्य से पूछा था।
इसके उत्तर में भास्कराचार्य ने कहा,
“बाले लीलावती, कुछ लोग जो यह कहते हैं कि यह पृथ्वी शेषनाग, कछुआ या हाथी या अन्य किसी वस्तु पर आधारित है तो वे गलत कहते हैं।
यदि यह मान भी लिया जाए कि यह किसी वस्तु पर टिकी हुई है तो भी प्रश्न बना रहता है कि वह वस्तु किस पर टिकी हुई है और इस प्रकार कारण का कारण और फिर उसका कारण…
यह क्रम चलता रहा, तो न्याय शास्त्र में इसे अनवस्था दोष कहते हैं।
लीलावती ने कहा
फिर भी यह प्रश्न बना रहता है पिताजी कि पृथ्वी किस चीज पर टिकी है ?
तब भास्कराचार्य ने कहा,
क्यों हम यह नहीं मान सकते कि पृथ्वी किसी भी वस्तु पर आधारित नहीं है !
यदि हम यह कहें कि पृथ्वी अपने ही बल से टिकी है और इसे धारणात्मिका शक्ति कह दें तो क्या दोष है ?
इस पर लीलावती ने पूछा
यह कैसे संभव है।
तब भास्कराचार्य सिद्धान्त की बात कहते हैं
कि वस्तुओं की शक्ति बड़ी विचित्र है।4
मरुच्लो भूरचला स्वभावतो यतो
विचित्रावतवस्तु शक्त्य:।।
सिद्धांत शिरोमणी गोलाध्याय-भुवनकोश (5)
आगे कहते हैं-
आकृष्टिशक्तिश्च मही तया यत् खस्थं
गुरुस्वाभिमुखं स्वशक्तत्या।
आकृष्यते तत्पततीव भाति
समेसमन्तात् क्व पतत्वियंखे।।
सिद्धांत शिरोमणी गोलाध्याय-भुवनकोश- (6)
अर्थात्
पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है।
पृथ्वी अपनी आकर्षण शक्ति से भारी पदार्थों को अपनी ओर खींचती है और आकर्षण के कारण वह जमीन पर गिरते हैं।
पर जब आकाश में समान ताकत चारों ओर से लगे, तो कोई कैसे गिरे?
अर्थात्
आकाश में ग्रह निरावलम्ब रहते हैं क्योंकि विविध ग्रहों की गुरुत्व शक्तियां संतुलन बनाए रखती हैं।
उपरोक्त श्लोकोँ को श्री भास्कराचार्य जी ने अपनी आत्मजा के नाम पर स्वरचित ग्रंन्थ “लीलावती” मेँ संकलित किया था और वे स्वयं इस महान ग्रन्थ को वैदिक साहित्य से सम्बध्द मानते है।
कितने दुःख की बात है कि
आजकल हम कहते हैं कि न्यूटन ने ही सर्वप्रथम गुरुत्वाकर्षण की खोज की, परन्तु उसके 550-670 वर्ष पूर्व भास्कराचार्य ने यह बता दिया था।
तमसो मा ज्योतिर्गमयः
(हे परमेश्वर! हमेँ अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो)