HINDUISM AND SANATAN DHARMA

Hinduism,Cosmos ,Sanatan Dharma.Ancient Hinduism science.

महाभारत की वो गुप्त बातें

ये हैं महाभारत की वो गुप्त बातें, –

Image

महाभारत हिंदू संस्कृति की एक अमूल्य धरोहर है। शास्त्रों में इसे पांचवा वेद भी कहा गया है। इसके रचयिता महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास हैं। महर्षि वेदव्यास ने इस ग्रंथ के बारे में स्वयं कहा है- यन्नेहास्ति न कुत्रचित्। अर्थात जिस विषय की चर्चा इस ग्रंथ में नहीं की गई है, उसकी चर्चा अन्यत्र कहीं भी उपलब्ध नहीं है। श्रीमद्भागवतगीता जैसा अमूल्य रत्न भी इसी महासागर की देन है।
इस ग्रंथ में कुल मिलाकर एक लाख श्लोक है, इसलिए इसे शतसाहस्त्री संहिता भी कहा जाता है। यह ग्रंथ विचित्र और रोचक बातों से भरा है। बहुत कम लोग ही इस ग्रंथ की रोचक बातों को जानते हैं।

1- महाभारत ग्रंथ की रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी लेकिन इसका लेखन भगवान श्रीगणेश ने किया था। भगवान श्रीगणेश ने इस शर्त पर महाभारत का लेखन किया था कि महर्षि वेदव्यास बिना रुके ही लगातार इस ग्रंथ के श्लोक बोलते रहे।

तब महर्षि वेदव्यास ने भी एक शर्त रखी कि मैं भले ही बिना सोचे-समझे बोलूं लेकिन आप किसी भी श्लोक को बिना समझे लिखे नहीं। बीच-बीच में महर्षि वेदव्यास ने कुछ ऐसे ग्रंथ बोले जिन्हें समझने में श्रीगणेश को थोड़ा समय लगा और इस दौरान महर्षि वेदव्यास अन्य श्लोकों की रचना कर लेते थे।

2- महाभारत ग्रंथ का वाचन सबसे पहले महर्षि वेदव्यास के शिष्य वैशम्पायन ने राजा जनमेजय की सभा में किया था। राजा जनमेजय अभिमन्यु के पौत्र तथा परीक्षित के पुत्र थे। इन्होंने ने ही अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्पयज्ञ करवाया था।

3- भीष्म पितामह के पिता का नाम शांतनु था, उनका पहला विवाह गंगा से हुआ था। पूर्वजन्म में शांतनु राजा महाभिष थे। उन्होंने बड़े-बड़े यज्ञ करके स्वर्ग प्राप्त किया। एक दिन बहुत से देवता और राजर्षि, जिनमें महाभिष भी थे, ब्रह्माजी की सेवा में उपस्थित थे। उसी समय वहां देवी गंगा का आना हुआ। गंगा को देखकर राजा महाभिष मोहित हो गए और एकटक उन्हें देखने लगे। तब ब्रह्माजी ने कहा- महाभिष तुम मृत्युलोग जाओ, जिस गंगा को तुम देख रहे हो, वह तुम्हारा अप्रिय करेगी और तुम जब उस पर क्रोध करोगे तब इस शाप से मुक्त हो जाओगे।

4- ब्रह्माजी के श्राप के कारण अगले जन्म में महाभिष, राजा प्रतीप के पुत्र शांतनु बने। इनका विवाह देवी गंगा से हुआ। विवाह से पहले गंगा ने शांतनु से यह प्रतिज्ञा करवाई थी कि वे कभी कोई प्रश्न नहीं पूछेंगे। शांतनु ने उनकी यह बात मान ली। राजा शांतनु और गंगा की आठ संतान हुई। पहली सातों संतानों को गंगा ने जन्म लेते ही नदी में प्रवाहित कर दिया। वचनबद्ध होने के कारण राजा शांतनु गंगा से कुछ नहीं पूछ पाए।

5- जब गंगा सांतवी आठवे संतान को नदी में प्रवाहित करने जा रही थी तब राजा शांतनु ने क्रोध में आकर उससे इसका कारण पूछा। तब देवी गंगा ने उन्हें पिछले जन्म की पूरी बात बताई और वह शांतनु की आठवी संतान को लेकर अन्यत्र चली गई।

6- धर्म ग्रंथों के अनुसार तैंतीस देवता प्रमुख माने गए हैं। इनमें अष्ट वसु भी हैं। ये ही अष्ट वसु शांतनु व गंगा के पुत्र के रूप में अवतरित हुए क्योंकि इन्हें वशिष्ठ ऋषि ने मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दिया था। गंगा ने अपने सात पुत्रों को जन्म लेते ही नदी में बहा कर उन्हें मनुष्य योनि से मुक्त कर दिया था। राजा शांतनु व गंगा का आठवां पुत्र भीष्म के रूप में प्रसिद्ध हुआ।

7- राजा शांतनु का दूसरा विवाह निषाद कन्या सत्यवती से हुआ। शांतनु और सत्यवती के दो पुत्र हुए- चित्रांगद और वित्रिचवीर्य। चित्रांगद बहुत ही वीर और पराक्रमी था। एक युद्ध में उसी के नाम के गंर्धवराज चित्रांगद ने उसका वध कर दिया। चित्रांगद के बाद विचित्रवीर्य को राजा बनाया गया। इनका विवाह काशी की राजकुमारी अंबिका और अंबालिका से हुआ। लेकिन कुछ समय बाद ही वित्रिचवीर्य की मृत्यु हो गई।

8- महाभारत में विदुर यमराज के अवतार थे। यमराज को ऋषि माण्डव्य के श्राप के कारण मनुष्य योनि में जन्म लेना पड़ा। विदुर धर्म शास्त्र और अर्थशास्त्र में बड़े निपुण थे। उन्होंने जीवनभर कुरुवंश के हित के लिए कार्य किया।

9- यदुवंशी राजा शूरसेन की पृथा नामक कन्या व वसुदेव नामक पुत्र था। इस कन्या को राजा शूरसेन अपनी बुआ के संतानहीन लड़के कुंतीभोज को गोद दे दिया था। कुंतीभोज ने इस कन्या का नाम कुंती रखा। कुंती का विवाह राजा पाण्डु से हुआ था।

10- जब कुंती बाल्यावस्था में थी, उस समय उसने ऋषि दुर्वासा की सेवा की थी। सेवा से प्रसन्न होकर ऋषि दुर्वासा ने कुंती को एक मंत्र दिया जिससे वह किसी भी देवता का आह्वान कर उससे पुत्र प्राप्त कर सकती थी। विवाह से पूर्व इस मंत्र की शक्ति देखने के लिए एक दिन कुंती ने सूर्यदेव का आह्वान किया जिसके फलस्वरूप कर्ण का जन्म हुआ।

11- महाराज पाण्डु का दूसरा विवाह मद्रदेश की राजकुमारी माद्री से हुआ। एक बार राजा पाण्डु शिकार खेल रहे थे। उस समय किंदम नामक ऋषि अपनी पत्नी के साथ हिरन के रूप में सहवास कर रहे थे। उसी अवस्था में राजा पाण्डु ने उन पर बाण चला दिए। मरने से पहले ऋषि किंदम ने राजा पाण्डु को श्राप दिया कि जब भी वे अपनी पत्नी के साथ सहवास करेंगे तो उसी अवस्था में उनकी मृत्यु हो जाएगी।

12- ऋषि किंदम के श्राप से दु:खी होकर राजा पाण्डु ने राज-पाट का त्याग कर दिया और वनवासी हो गए। कुंती और माद्री भी अपने पति के साथ ही वन में रहने लगीं। जब पाण्डु को ऋषि दुर्वासा द्वारा कुंती को दिए गए मंत्र के बारे में पता चला तो उन्होंने कुंती से धर्मराज का आवाह्न करने के लिए कहा जिसके फलस्वरूप धर्मराज युधिष्ठिर का जन्म हुआ। इसी प्रकार वायुदेव के अंश से भीम और देवराज इंद्र के अंश से अर्जुन का जन्म हुआ। कुंती ने यह मंत्र माद्री को बताया। तब माद्री ने अश्विनकुमारों का आवाह्न किया, जिसके फलस्वरूप नकुल व सहदेव का जन्म हुआ।

13- धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी को महर्षि वेदव्यास ने सौ पुत्रों की माता होने का वरदान दिया था। समय आने पर गांधारी को गर्भ ठहरा लेकिन वह दो वर्ष तक पेट में रुका रहा। घबराकर गांधारी ने गर्भ गिरा दिया। उसके पेट से लोहे के गोले के समान एक मांस पिंड निकला। तब महर्षि वेदव्यास वहां पहुंचे और उन्होंने कहा कि तुम सौ कुण्ड बनवाकर उन्हें घी से भर दो और उनकी रक्षा के लिए प्रबंध करो। इसके बाद महर्षि वेदव्यास ने गांधारी को उस मांस पिण्ड पर ठंडा जल छिड़कने के लिए कहा। जल छिड़कते ही उस मांस पिण्ड के 101 टुकड़े हो गए।

14- महर्षि की आज्ञानुसार गांधारी ने उन सभी मांस पिंडों को घी से भरे कुंडों में रख दिया। फिर महर्षि ने कहा कि इन कुण्डों को दो साल के बाद खोलना। समय आने पर उन कुण्डों से पहले दुर्योधन का जन्म हुआ और उसके बाद अन्य गांधारी पुत्रों का। जिस दिन दुर्योधन का जन्म हुआ था उसी दिन भीम का भी जन्म हुआ था।

15- जन्म लेते ही दुर्योधन गधे की तरह रेंकने लगा। उसका शब्द सुनकर गधे, गीदड़, गिद्ध और कौए भी चिल्लाने लगे, आंधी चलने लगी, कई स्थानों पर आग लग गई। यह देखकर विदुर ने राजा धृतराष्ट्र से कहा कि आपका यह पुत्र निश्चित ही कुल का नाश करने वाला होगा अत: आप इस पुत्र का त्याग कर दीजिए लेकिन पुत्र स्नेह के कारण धृतराष्ट्र ऐसा नहीं कर पाए।

16- गांधारी का सबसे बड़ा पुत्र था – दुर्योधन। उसके बाद दु:शासन, दुस्सह, दुश्शल, जलसंध, सम, सह, विंद, अनुविंद, दुद्र्धर्ष, सुबाहु, दुष्प्रधर्षण, दुर्मुर्षण, दुर्मुख, दुष्कर्ण, कर्ण, विविंशति, विकर्ण, शल, सत्व, सुलोचन, चित्र, उपचित्र, चित्राक्ष, चारुचित्र, शरासन, दुर्मुद, दुर्विगाह, विवित्सु, विकटानन, ऊर्णनाभ, सुनाभ, नंद, उपनंद, चित्रबाण, चित्रवर्मा, सुवर्मा, दुर्विमोचन, आयोबाहु, महाबाहु, चित्रांग, चित्रकुंडल, भीमवेग, भीमबल, बलाकी, बलवद्र्धन, उग्रायुध, सुषेण, कुण्डधार, महोदर, चित्रायुध, निषंगी, पाशी, वृंदारक, दृढ़वर्मा, दृढ़क्षत्र, सोमकीर्ति, अनूदर, दृढ़संध, जरासंध, सत्यसंध, सद:सुवाक, उग्रश्रवा, उग्रसेन, सेनानी, दुष्पराजय, अपराजित, कुण्डशायी, विशालाक्ष, दुराधर, दृढ़हस्त, सुहस्त, बातवेग, सुवर्चा, आदित्यकेतु, बह्वाशी, नागदत्त, अग्रयायी, कवची, क्रथन, कुण्डी, उग्र, भीमरथ, वीरबाहु, अलोलुप, अभय, रौद्रकर्मा, दृढऱथाश्रय, अनाधृष्य, कुण्डभेदी, विरावी, प्रमथ, प्रमाथी, दीर्घरोमा, दीर्घबाहु, महाबाहु, व्यूढोरस्क, कनकध्वज, कुण्डाशी, और विरजा। 100 पुत्रों के अलावा गांधारी की एक पुत्री भी थी जिसका नाम दुुश्शला था, इसका विवाह राजा जयद्रथ के साथ हुआ था।

17- कौरवों के अतिरिक्त धृतराष्ट्र का एक पुत्र और था, उसका नाम युयुत्सु था। जिस समय गांधारी गर्भवती थी और धृतराष्ट्र की सेवा करने में असमर्थ थी। उन दिनों एक वैश्य कन्या ने धृतराष्ट्र की सेवा की, उसके गर्भ से उसी साल युयुस्तु नामक पुत्र हुआ था। वह बहुत ही यशस्वी और विचारशील था।

18- एक बार दुर्योधन ने धोखे से भीम को विष खिलाकर गंगा नदी में फेंक दिया। बेहोशी की अवस्था में भीम बहते हुए नागलोक पहुंच गए। वहां विषैले नागों ने भीम को खूब डंसा, जिससे भीम के शरीर का जहर कम हो गया और वे होश में आ गए और नागों को पटक-पटक कर मारने लगे। यह सुनकर नागराज वासुकि स्वयं भीम के पास आए। उनके साथी आर्यक नाग में भीमसेन को पहचान लिया। आर्यक नाग भीमसेन के नाना का नाना था। आर्यक नाग ने प्रसन्न होकर भीम को हजारों हाथियों का बल प्रदान करने वाले कुंडों का रस पिलाया, जिससे भीमसेन और भी शक्तिशाली हो गए।

19- पांडवों के कुलगुरु कृपाचार्य थे। इनके पिता का नाम शरद्वान था, वे महर्षि गौतम के पुत्र थे। महर्षि शरद्वान ने घोर तपस्या कर दिव्य अस्त्र प्राप्त किए और धनुर्वेद में निपुणता प्राप्त की। यह देखकर देवराज इंद्र भी घबरा गए और उन्होंने शरद्वान की तपस्या तोडऩे के लिए जानपदी नाम की अप्सरा भेजी। इस सुंदरी को देखकर महर्षि शरद्वान का वीर्यपात हो गया। उनका वीर्य सरकंड़ों पर गिरा वह दो भागों में बंट गया। उससे एक कन्या और एक बालक उत्पन्न हुआ। वही बालक कृपाचार्य बना और कन्या कृपी के नाम से प्रसिद्ध हुई।

20- गुरु द्रोणाचार्य महर्षि भरद्वाज के पुत्र थे। एक बार वे सुबह गंगा स्नान करने गए, वहां उन्होंने घृताची नामक अप्सरा को जल से निकलते देखा। यह देखकर उनके मन में विकार आ गया और उनका वीर्य स्खलित होने लगा। यह देखकर उन्होंने अपने वीर्य को द्रोण नामक एक बर्तन में संग्रहित कर लिया। उसी में से द्रोणाचार्य का नाम हुआ।

21- गुरु द्रोणाचार्य का विवाह कृपाचार्य की बहन कृपी से हुआ। कृपी के गर्भ से अश्वत्थामा का जन्म हुआ। उसने जन्म लेते ही अच्चै:श्रवा अश्व के समान शब्द किया, इसी कारण उसका नाम अश्वत्थामा हुआ। वह महादेव, यम, काल और क्रोध के सम्मिलित अंश से उत्पन्न हुआ था।

22- जब द्रोणाचार्य शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, तब उन्हें पता चला कि भगवान परशुराम ब्राह्मणों को अपना सर्वस्व दान कर रहे हैं। द्रोणाचार्य भी उनके पास गए और अपना परिचय दिया। द्रोणाचार्य ने भगवान परशुराम से उनके सभी दिव्य अस्त्र-शस्त्र मांग लिए और उनका प्रयोग, रहस्य व उपसंहार की विधि भी सीख ली।

23- द्रोणाचार्य अपने पुत्र अश्वत्थामा को अधिक प्रेम करते थे। उन्होंने शिष्यों को पानी लाने के लिए जो बर्तन दिए थे, उनमें औरों के तो देर से भरते लेकिन अश्वत्थामा का बर्तन सबसे पहले भर जाता, जिससे वह अपने पिता के पास पहले पहुंचकर गुप्त रहस्य सीख लेता। यह बात अर्जुन ने ताड़ ली। अब वह वारुणास्त्र से अपना बर्तन झटपट भरकर द्रोणाचार्य के पास पहुंच जाता। यही कारण था कि अर्जुन और अश्वत्थामा की शिक्षा एक समान हुई।

24- जब पाण्डव वारणावत जाने लगे तो विदुरजी ने युधिष्ठिर को सांकेतिक भाषा में उस महल का रहस्य युधिष्ठिर को बता दिया और उससे बचने के उपाय भी दिए। विदुरजी की सारी बात युधिष्ठिर ने अच्छी तरह से समझ ली। तब विदुरजी हस्तिनापुर लौट गए। यह घटना फाल्गुन शुक्ल अष्टमी, रोहिणी नक्षत्र की है।

25- पांडव एक साल तक वारणावत नगर में रहे। एक दिन कुंती ने ब्राह्ण भोज कराया। जब सब लोग खा-पीकर चले गए तो वहां एक भील स्त्री अपने पांच पुत्रों के साथ भोजन मांगने आई और वे सब उस रात वहीं सो गए। उसी रात भीम ने स्वयं महल में आग लगा दी और गुप्त रास्ते से बाहर निकल गए। लोगों ने जब सुबह भील स्त्री और अन्य पांच शव देखे तो उन्हें लगा कि पांडव कुंती सहित जल कर मर गए हैं।

Leave a comment

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Information

This entry was posted on March 4, 2014 by in HINDUISM SCIENCE and tagged , .

I'm just starting out; leave me a comment or a like :)

Follow HINDUISM AND SANATAN DHARMA on WordPress.com
type="text/javascript" data-cfasync="false" /*/* */