HINDUISM AND SANATAN DHARMA

Hinduism,Cosmos ,Sanatan Dharma.Ancient Hinduism science.

Surya Siddhant in HINDI-Vedic Astronomy

Ancient Vedic Astronomy – प्राचीन भारतीय खगोल विज्ञान:

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ब्रह्मांड के गूढ रहस्यों की सूक्ष्म से सूक्ष्म जानकारी भारतीयो को बहुत प्राचीन समय से रही है। सृष्टि के आदि से ही वेदों में ज्ञान-विज्ञान से आर्य लोग विज्ञान के गूढ़ रहस्यों को साक्षात कर लेते है फिर चाहे वह खगोल विज्ञान हो , शरीर रचना , विमान आदि या फिर परमाणु जैसी शक्ति हो।

फ्रांस निवासी जेकालयट आर्यावर्त की विज्ञान को देखकर अपनी प्रसिद्ध पुस्तक (दि) बाइबल इन इंडिया में लिखता है कि “सब विद्या भलाइयों का भंडार आर्यावर्त है।” आर्यावर्त से ज्ञान विज्ञान को अरब वालों ने सीखा व तथा अरब से ही यूरोप पहुंचा। इसका एक प्रमाण यह है कि मिल साहब अपनी पुस्तक हिस्ट्री ऑफ इंडिया , जिल्द-2 पृष्ठ १०७ पर लिखते है कि “खलीफा हारुरशीद और अलमामू ने भारतीय ज्योतिषियों को अरब बुलाकर उनके ग्रन्थों (वेदों, पुराणों व उपनिषदों) का अरबी में अनुवाद करवाया।”

इसके अलावा मिस्टर बेबर इंडियन लिटरेचर नामक अपनी पुस्तक में लिखते है कि “आर्य ग्रीकों और अरबों के गुरु थे। आर्यभट्ट के ग्रन्थों का अनुवाद कर उनका नाम धर्मबहर रखा गया।
अल्बेरूनी लिखता है कि अंकगणित शास्त्र में हिन्दू लोग संसार कि सब जतियों से बढ़कर है। संसार की कोई भी जाति हजार से आगे के अंक नहीं जानती है जबकि हिन्दू लोगों में १८ अंक तक की संख्याओं के नाम है और वे उसे परार्ध कहते है।
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Ancient Vedic Arithmetic:
मैं यहाँ कुछ वेदों के मंत्रो से उद्धरण प्रस्तुत करके प्रमाण सहित संक्षेप में खगोल विज्ञान की सभी जानकारी वेदों में प्राचीन समय से या यूँ कहें की सृष्टि की आदि में ही ईश्वर से प्राप्त होती है , उनको यहाँ दे रहा हूँ ।
आर्य उच्च कोटि के विद्वान थे, इसको हम इस प्रकार सिद्ध कर सकते है :-
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1. पृथ्वी के आकार का ज्ञान:-
चक्राणास परीणह पृथिव्या हिरण्येन मणिना शुम्भमाना ।
न हिन्वानाससित तिरुस्त इन्द्र परि स्पशो अद्धात् सूर्येण ॥ -ऋग्वेद१-३३-८
मंत्र से स्पष्ट है कि पृथ्वी गोल है तथा सूर्य के आकर्षण पर ठहरी है। शतपथ में जो परिमण्डल रूप है वह भी पृथ्वी कि गोलाकार आकृति का प्रतीक है।
भास्कराचार्य जी ने भी पृथ्वी के गोल होने व इसमें आकर्षण (चुम्बकीय) शक्ति होने जैसे सभी सिद्धांतों वेदाध्ययन के आधार पर ही अपनी पुस्तक सिद्धान्त शिरोमणि(गोलाध्याय व ४-४) में प्रतिपादित किये।

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2. आयं गो पृश्निर क्रमीदसवन्मातारं पुर: ।
पितरं च प्रयन्त्स्व ॥ – यजुर्वेद ३-६
मंत्र से स्पष्ट होता है कि पृथ्वी जल सहित सूर्य के चारों ओर घूमती जाती है।
भला आर्यों को ग्वार कहने वाले स्वयं जंगली ही हो सकते है। ग्रह-परिचालन सिद्धान्त को महाज्ञानी ही लिख सकते है।
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3. वेद सूर्य को वृघ्न कहते है अर्थात पृथ्वी से सैकड़ो गुणा बड़ा व करोड़ो कोस दूर। क्या ग्वार जाति यह सब विज्ञान के गूढ रहस्य जान सकती है…?
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4. दिवि सोमो अधिश्रित -अथर्ववेद १४-९-९
जिस तरह चन्द्रलोक सूर्य से प्रकाशित होता है, उसी तरह पृथ्वी भी सूर्य से प्रकाशित होती है।
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5. एको अश्वो वहति सप्तनामा । -ऋग्वेद १-१६४-२
सूर्य की सात किरणों का ज्ञान ऋग्वेद के इसी मंत्र से संसार को ज्ञात हुआ ।
अव दिवस्तारयन्ति सप्त सूर्यस्य रश्मय: । – अथर्ववेद १७-१०-१७-९
सूर्य की सात किरणें दिन को उत्पन्न करती है। सूर्य के अंदर काले धब्बे होते है।
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6. यं वै सूर्य स्वर्भानु स्तमसा विध्यदासुर: ।
अत्रय स्तमन्वविन्दन्न हयन्ये अशक्नुन ॥ – ऋग्वेद ५-४०-९
अर्थात जब चंद्रमा पृथ्वी ओर सूर्य के बीच में आ जाता है तो सूर्य पूरी तरह से स्पष्ट दिखाई नहीं देता। चंद्रमा द्वारा सूर्य को अंधकार में घेरना ही सूर्यग्रहण है ।
अत: स्पष्ट है कि आर्यों को सूर्य-चन्द्रग्रहण के वैज्ञानिक कारणों का परिज्ञान था तथा पृथ्वी की परिधि का भी ठीक-ठीक ज्ञान था।
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7. सिद्धान्त शिरोमणि में तुरीय यंत्र (दूरबीन) का स्पष्ट पता चलता है। नीचे दी चित्र में सिद्धान्त शिरोमणि का प्रमाण :-
चित्र में शिल्प संहिता में लिखा है कि पहले मिट्टी को गलाकर कांच तैयार करें, फिर उसको साफ करके स्वच्छ कांच (लैंस बनाकर) को बांस या धातु की नली में (आदि, मध्य और अंत) में लगाकर फिर ग्रहणादि देखें।
वेद भगवान भी कहता है कि जब चन्द्र की छाया से सूर्यग्रहण हो तब तुरीय यंत्र से आंखे देखती है। – (ऋग्वेद ५-४०-६)
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8. वैदिक मंत्रों के सत्य अर्थ बताने वाले ऐतरेय और गोपथ ब्राह्मण में लिखा है कि न सूर्य कभी अस्त होता है, न उदय होता है। वह सदैव बना रहता है, परंतु जब पृथ्वी से छिप जाता है तब रात्रि हो जाती है और जब पृथ्वी से आड़ समाप्त हो जाती है तब दिन हो जाता है। (Haug’s Aitereya Brahmana, Vol. 2, p. 243)
इसी प्रकार वेदों में ध्रुव प्रदेश में होने वाले छ:-छ: मास के दिन-रात का भी वर्णन है। पृथ्वी पर ऐसी कोई जगह नहीं बची जिसका परिज्ञान आर्यों को न हो। ऐसे में जो ये कहे कि खगोल विज्ञान के सभी सूक्ष्म-से-सूक्ष्म आविष्कार आर्यों ने नहीं किए तो वे महामूर्ख ही कहे जाएंगे।
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9. विभिन्न ग्रहों की दूरी:-
महान वैदिक ज्योतिष के विद्वान आर्यभट्ट जी ने सूर्य से विविध ग्रहों की दूरी के बारे में जो आंकड़े प्रस्तुत किए थे वे आजकल के आंकड़ो ने बिलकुल मिलता-जुलते है। आज पृथ्वी से सूर्य की दूरी (१.५ * १०८ कि.मी.) है। इसे एयू (खगोलीय इकाई- astronomical unit) कहा जाता है। इस अनुपात के आधार पर निम्न सूची बनती है :-
ग्रह आर्यभट्ट का मान – वर्तमान मान
बुध- ०.३७५ एयू – ०.३८७ एयू.
शुक्र- ०.७२५ एयू – ०.७२३ एयू.
मंगल- १.५३८ एयू – १.५२३ एयू.
गुरु – ५.१६ एयू – ५.२० एयू.
शनि- ९.४१ एयू – ९.५४ एयू.
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10. वेदों में वर्ष की अवधि :- ऋग्वेद (१-१६४-४८) में कहा गया है कि वर्ष रथ के पहिये के समान चक्र रूप में पुन: पुन: घूमता रहता है। उस चक्र में (द्वादश+प्रधय:) जैसे चक्र में १२ छोटी-छोटी अरे प्रधि=कीलें हैं। वैसे ही साल में १२ मास हैं। इसके परिक्रमण के दौरान कोई भाग सूर्य के नजदीक आने/दूर जाने से तीन ऋतुएँ होती है। उस वर्ष में ३६० दिन रूपी कीलें कभी विचलित नहीं होती है। (वास्तव में पृथ्वी द्वारा सूर्य कि परिक्रमा ३६५ दिन ५ घंटे ४८ मिनट ४५.५१ सेकंड में पूरी होती है। लेकिन वेदों में चन्द्र मास के हिसाब से ३६० दिन कहें है। चंद्रमास मास में प्रत्येक ३२ मास के बाद एक लौन्द का अधिक मास जोड़ा जाता है। वेदों में इस अधिक मास लौन्द का वर्णन है। )
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11. ब्रह्मांड का विस्तार :- ब्रह्मांड की विशालता के विषय में वेदों ने कहा है कि यह अनंत है अर्थात इसकी कोई सीमा ही नहीं है। परंतु इसी बात को आज के वैज्ञानिक दूसरी भाषा में कहते है। आजकल ब्रह्मांड की विशालता जानने के लिए प्रकाश वर्ष की इकाई का प्रयोग होता है। प्रकाश एक सेकंड में ३ लाख किलोमीटर की गति से भागता है। इस गति से भागते हुए १ वर्ष में जितनी दूरी तय करता है उसे प्रकाश वर्ष कहते है। आधुनिक विज्ञान बताता है कि हमारी आकाशगंगा (milky way) की लंबाई एक लाख वर्ष है तथा चौड़ाई दस हजार प्रकाश वर्ष है। इस आकाशगंगा से 20 लाख 20 हजार प्रकाशवर्ष दूर एक आकाशगंगा है। और ब्रह्मांड में ऐसी अरबों आकाशगंगाए है।
वास्तव में सब कारणों के कारण अर्थात जिसका कोई कारण नहीं उस अनादि ईश्वर की रचना भी अनंत है। ईश्वर के प्रत्येक गुण का एक नाम है। अत उसके अनंत गुणों के असंख्य नामों में एक नाम अनंत कोटि ब्रह्मांड नायक भी है। यह नाम ब्रह्मांड की अनन्तता तो बताता ही है यह विशेषण पूर्ण वैज्ञानिक होने का आभास भी करता है।

अत: इस संक्षिप्त अवलोकन से हम कह सकते हैं कि काल गणना, गणित तथा सम्पूर्ण खगोल विज्ञान की भारत में सदा ही उज्ज्वल परंपरा रही है। पिछली कुछ सदियों में यह वैदिक ज्ञान-विज्ञान की धारा कुछ अवरुद्ध सी हो गयी थी। परंतु कुछ काल बाद हमारे ही शास्त्रों से ज्ञान-विज्ञान की समस्त विद्या विदेशियों ने प्राप्त करके हमारे ऋषियों के प्रति कृतज्ञ होने के बजाय उन्हें जंगली, अवैज्ञानिक आदि झूठ प्रचारित किया। इन सबका कारण आर्यावर्त के लोगों का पूर्ण-वैज्ञानिक वैदिक धर्म से दूर होकर मिथ्या अधर्मयुक्त मत-पंथ, संप्रदायों आदि में पड़ना ही है।

सभी भारतवासियों को यह समझने में देर नहीं करना चाहिए कि इस संसार में जो भी कुछ अच्छा है वह हमारा ही है। और आजतक जीतने भी वैज्ञानिक आविष्कार हुए है या होंगे उन सबका आदि मूल यही वेद ही है अर्थात आर्यावर्त ही है। भारतीयों को अपना स्वाभिमान जगाकर फिर से सारे विश्व में वैदिक संस्कृति के प्रचार-प्रसार में लगकर विश्वगुरु भारत का लक्ष्य प्राप्त करने में यथासामर्थ्य योगदान देना चाहिए।

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One comment on “Surya Siddhant in HINDI-Vedic Astronomy

  1. Sanatan Dharm and Hinduism
    February 1, 2018

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