HINDUISM AND SANATAN DHARMA

Hinduism,Cosmos ,Sanatan Dharma.Ancient Hinduism science.

Somras in Hindi, सोमरस ‘शराब’ नहीं है

कुछ लोगों का विचार है कि वैदिक ऋषि भी शराब पीते थे जिसे सोमरस कहते थे। बच्चन के बाउजी बड़के बच्चन साहब ने तो पूरी कविता ही झोंक रखी है इसी सोच के आस पास।

सोम सुरा पुरखे पीते थे, हम कहते उसको हाला,

द्रोणकलश जिसको कहते थे, आज वही मधुघट आला,

वेदिवहित यह रस्म न छोड़ो वेदों के ठेकेदारों,

युग युग से है पुजती आई नई नहीं है मधुशाला।।

वही वारूणी जो थी सागर मथकर निकली अब हाला,

रंभा की संतान जगत में कहलाती ‘साकीबाला’,

देव अदेव जिसे ले आए, संत महंत मिटा देंगे!

किसमें कितना दम खम, इसको खूब समझती मधुशाला।।

सोमरस ‘शराब’ नहीं है वह ऋगवेद की इस ऋचा से स्पष्ट हो जाता है –

ऋग्वेद में शराब की घोर निंदा करते हुए कहा गया है कि

।।हृत्सु पीतासो युध्यन्ते दुर्मदासो न सुरायाम्।।

इसका मतलब है कि सुरापान करने या नशीले पदार्थों को पीने वाले अक्सर युद्ध, मार-पिटाई या उत्पात मचाया करते हैं।

बल्कि सोमरस कोई मादक पदार्थ न होकर कोई पवित्र रस या औषधि ही होनी चाहिए।

स्वयं भगवान कृष्ण ने कहा है-

जो वेदों का अध्ययन करते तथा सोमरस का पान करते हैं, वे स्वर्ग प्राप्ति की गवेषणा करते हुए अप्रत्यक्ष रूप से मेरी पूजा करते हैं | वे पापकर्मों से शुद्ध होकर, इन्द्र के पवित्र स्वर्गिक धाम में जन्म लेते हैं, जहाँ वे देवताओं का सा आनन्द भोगते हैं

त्रैविद्या मां सोमपाः पूतपापा

यज्ञैरिष्ट्वा स्वर्गतिं प्रार्थयन्ते |

ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोक-

मश्र्नन्ति दिव्यान्दिवि देवभोगान् ||

कुछ का विचार विचार है कि सोम वह पादप है जो अफगानिस्तान की पहाड़ियों में पैदा होता है ऐसा इनका दावा है उसके लिए ये ऋग्वेद 10.34.1 का मन्त्र “सोमस्येव मौजवतस्य भक्षः” उद्धृत करते हैं। मौजवत पर्वत को आजके हिन्दुकुश अर्थात अफगानिस्तान से निरर्थक ही जोड़ने का प्रयास करते हैं जबकि सच्चाई इसके विपरीत है। निरुक्त में “मूजवान पर्वतः” पाठ है मगर वेद का मौजवत और निरुक्त का मूजवान एक ही है, इसमें संदेह होता है, क्योंकि सुश्रुत में “मुञ्जवान” सोम का पर्याय लिखा है अतः मौजवत, मूजवान और मुञ्जवान पृथक पृथक हैं ज्ञात होता है।

#कुछ विद्वान सोमरस को मत्स्यपुराण के इस श्लोक से भी जोड़ते हैं, हालांकि यहां सोम का अर्थ चन्द्रमा से है। जहांआठ वसुओं में सोम की गणना इस प्रकार है-

आपो ध्रुवश्च सोमश्च धरश्चैवानिलोज्नल: । प्रत्यूषश्च प्रभासश्च वसवोज्ष्टौ प्रकीर्तिता: ॥

#कुछ सोमरस को भांग बताते हैं लेकिन सोमरस के दही में मिलाए जाने का वर्णन है और भांग कभी भी दही में नहीं मिलाते हैं।

ऋग्वेद की एक ऋचा में लिखा गया है कि यह निचोड़ा हुआ शुद्ध दधिमिश्रित सोमरस, सोमपान की प्रबल इच्छा रखने वाले इंद्रदेव को प्राप्त होता है.

(ऋग्वेद-1/5/5) हे वायुदेव! यह निचोड़ा हुआ सोमरस तीखा होने के कारण दुग्ध में मिश्रित करके तैयार किया गया है. आइए और इसका पान कीजिए. (ऋग्वेद-1/23/1)

।।शतं वा य: शुचीनां सहस्रं वा समाशिराम्। एदुनिम्नं न रीयते।।

(ऋग्वेद-1/30/2) अर्थात नीचे की ओर बहते हुए जल के समान प्रवाहित होते सैकड़ों घड़े सोमरस में मिले हुए हजारों घड़े दुग्ध मिल करके इंद्रदेव को प्राप्त हों।

सोमरस बनाने का बड़ा नाटकीय वर्णन #अमीश #त्रिपाठी ने अपने उपन्यास #Immortals of #Meluha में किया है

जबकि वेदों में इसका पूर्ण विवरण है-

।।उच्छिष्टं चम्वोर्भर सोमं पवित्र आ सृज। नि धेहि गोरधि त्वचि।। (ऋग्वेद सूक्त २८ श्लोक ९)

(यानी मूसल से कुचली हुई सोम को बर्तन से निकालकर पवित्र कुशा के आसन पर रखें और छानने के लिए पवित्र चरम पर रखें।)

।।औषधि: सोम: सुनोते: पदेनमभिशुण्वन्ति।- निरुक्त शास्त्र (११-२-२

(यानी सोम एक औषधि है जिसको कूट-पीसकर इसका रस निकालते हैं. सोम को गाय के दूध में मिलाने पर ‘गवशिरम्’दही में ‘दध्यशिरम्’बनता है. शहद या घी के साथ भी मिश्रण किया जाता था. सोम रस बनाने की प्रक्रिया वैदिक यज्ञों में बड़े महत्व की है. इसकी तीन अवस्थाएं हैं- पेरना, छानना और मिलाना. कहा जाता है ऋषि-मुनि इन्हें अनुष्ठान में देवताओं को अर्पित करते थे और बाद में प्रसाद के रूप में खुद भी इसका सेवन करते थे.)

#संजीवनी बूटी की तरह हैं इसके गुण

सोमरस एक ऐसा पेय है, जो संजीवनी की तरह काम करता है. यह शरीर को हमेशा जवान और ताकतवर बनाए रखता है.

(।।स्वादुष्किलायं मधुमां उतायम्, तीव्र: किलायं रसवां उतायम। उतोन्वस्य पपिवांसमिन्द्रम, न कश्चन सहत आहवेषु।।- ऋग्वेद (६-४७-१))

#यानी सोम बहुत स्वादिष्ट और मीठा पेय है. इसका पान करने वाला बलशाली हो जाता है. वह अपराजेय बन जाता है. शास्त्रों में सोमरस लौकिक अर्थ में एक बलवर्धक पेय माना गया है.

अलग है आध्यात्मिक अर्थ

यदि आध्यात्मिक नजरिए से यह माना जाता है कि सोम साधना की उच्च अवस्था में इंसान के शरीर में पैदा होने वाला रस है. इसके लिए कहा गया है.

(सोमं मन्यते पपिवान् यत् संविषन्त्योषधिम्। सोमं यं ब्रह्माणो विदुर्न तस्याश्नाति कश्चन।। (ऋग्वेद-१०-८५-३))

यानी बहुत से लोग मानते हैं कि मात्र औषधि रूप में जो लेते हैं, वही सोम है ऐसा नहीं है. एक सोमरस हमारे भीतर भी है, जो अमृतस्वरूप परम तत्व है जिसको खाया-पिया नहीं जाता केवल ज्ञानियों द्वारा ही पाया जा सकता है।#वनस्पति शास्त्र और आयुर्वेद में एक लता का वर्णन है जिसे सोमवल्ली कहते हैं। इसे महासोम,अंसुमान , रजत्प्रभा , कनियान , कनकप्रभा , प्रतापवान, स्वयंप्रभ, स्वेतान , चन्द्रमा ,,गायत्र ,पवत , जागत , साकर आदि नामो से भी जानते हैं।इसका वैज्ञानिक नाम #Sarcostemma acidum है, और यह Apocynaceae परिवार का सदस्य है जो सबट्रापिकल हिमालय में कठिनाई से मिल जाता है।आयुर्वेदिक ग्रंथ इसके बारे में सूचना देते हैं-पञ्चांगयुक्पञ्चदशच्छदाढ्या सर्पाकृतिः शोणितपर्वदेशा। सा सोमवल्ली रसबन्धकर्म करोति एकादिवसोपनीता ।। करोति सोमवृक्षोऽपि रसबन्धवधादिकम्। पूर्णिमादिवसानीतस्तयोर्वल्ली गुणाधिका ।। कृष्ण पक्षे प्रगलति दलं प्रत्यहं चैकमेकं शुक्लेऽप्येकं प्रभवति पुनर्लम्बमाना लताः स्युः । तस्याः कन्द: कलयतितरां पूर्णिमायां गृहीतो बद्ध्वा सूतं कनकसहितं देहलोहं विधत्ते ।। इयं सोमकला नाम वल्ली परमदुर्लभा। अनया बद्धसूतेन्द्रो लक्षवेधी प्रजायते। (रसेंद्रचूड़ामणि 6।6-9) ‘जिसके पंद्रह पत्ते होते हैं, जिसकी आकृति सर्प की तरह होती है, जहाँ से पत्ते निकलते हैं- वे गठिं जिसकी लाल होती है, ऐसी वह पूर्णिमा के दिन लायी हुई पञ्चांग- (मूल, डण्डी, पत्ते, फूल और फल) से युक्त सोमवल्ली पारद को वद्ध कर देती है। पूर्णिमा के दिन लाया हुआ पञ्चांग- (मूल, छाल, पत्ते, फूल और फल-) से युक्त सोमवृक्ष भी पारद को बधिना, पारद की भस्म बनाना आदि कार्य कर देता है। परंतु सोमवल्ली और सोमवृक्ष- इन दोनों में सोमवल्ली अधिक गुणों वाली है। इस सोमवल्ली का कृष्ण पक्ष में प्रतिदिन एक-एक पत्ता झड़ जाता है और शुक्ल पक्ष में पुनः प्रतिदिन एक-एक पत्ता निकल आता है। इस तरह यह लता बढ़ती रहती है। पूर्णिमा के दिन इस लता का कंद निकाला जाए तो वह बहुत श्रेष्ठ होता है। धतूरे के सहित इस कन्द में बँधा हुआ पारद देह को लोहे की तरह दृढ़ बना देता है और इससे बँधा हुआ पारद लक्षवेधी हो जाता है अर्थात एक गुणा बद्ध पारद लाख गुणा लोहे को सोना बना देता है। यह सोम नाम की लता अत्यन्त ही दुर्लभ है।डा.मधुसूदन उपाध्याय

2 comments on “Somras in Hindi, सोमरस ‘शराब’ नहीं है

  1. Sanatan Dharm and Hinduism
    October 7, 2017

    Reblogged this on GLOBAL HINDUISM.

    Like

  2. Ishwar Purohit
    October 9, 2017

    ATEEVAANANDAM SANJAATAM GYANAPOORNAM LEKHANAM , SHODHAKATRUBHOY , NAMONAMH

    ACHARAY ISHWAR PUROHIT

    Liked by 1 person

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

I'm just starting out; leave me a comment or a like :)

Follow HINDUISM AND SANATAN DHARMA on WordPress.com

Follow me on Twitter

type="text/javascript" data-cfasync="false" /*/* */
%d bloggers like this: