******शूरवीर सम्राट विक्रमादित्य*****
अंग्रेज और वामपंथी इतिहासकार उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य को एतिहासिक शासक न मानकर एक मिथक मानते हैं।जबकि कल्हण की राजतरंगनी,कालिदास …
,नेपाल की वंशावलिया और अरब लेखक,अलबरूनी उन्हें वास्तविक महापुरुष मानते हैं।
उनके समय शको ने देश के बड़े भू भाग पर कब्जा जमा लिया था।विक्रम ने शको को भारत से मार भगाया और अपना राज्य अरब देशो तक फैला दिया था।
उनके नाम पर विक्रम सम्वत चलाया गया। विक्रमादित्य ईसा मसीह के समकालीन थे और उस वक्त उनका शासन अरब तक फैला था। विक्रमादित्य के बारे में प्राचीन अरब साहित्य में वर्णन मिलता है।
इनके पिता का नाम गन्धर्वसेन था एवं प्रसिद्ध योगी भर्तहरी इनके भाई थे।
विक्रमादित्य के इतिहास को अंग्रेजों ने जान-बूझकर तोड़ा और भ्रमित किया और उसे एक मिथकीय चरित्र बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी, क्योंकि विक्रमादित्य उस काल में महान व्यक्तित्व और शक्ति का प्रतीक थे, जबकि अंग्रेजों को यह सिद्ध करना जरूरी था कि ईसा मसीह के काल में दुनिया अज्ञानता में जी रही थी। दरअसल, विक्रमादित्य का शासन अरब और मिस्र तक फैला था और संपूर्ण धरती के लोग उनके नाम से परिचित थे। विक्रमादित्य अपने ज्ञान, वीरता और उदारशीलता के लिए प्रसिद्ध थे जिनके दरबार में नवरत्न रहते थे। इनमें कालिदास भी थे। कहा जाता है कि विक्रमादित्य बड़े पराक्रमी थे और उन्होंने शकों को परास्त किया था।
विक्रमादित्य के समय ज्योतिषाचार्य मिहिर, महान कवि कालिदास थे।
राजा विक्रम उनकी वीरता, उदारता, दया, क्षमा आदि गुणों की अनेक गाथाएं भारतीय साहित्य में भरी पड़ी हैं।
अधिकांश विद्वान विक्रमादित्य को परमार वंशी क्षत्रिय राजपूत मानते हैं। मालवा के परमार वंशी राजपूत राजा भोज विक्रमादित्य को अपना पूर्वज मानते थे।
जो भी हो पर इतना निर्विवाद सत्य है कि सम्राट विक्रमादित्य भारतीय इतिहास के सर्वश्रेष्ठ शासक थे।
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