अफगानिस्तान में जो कुछ हुआ है,उसे समझने के लिए पीछे जाना होगा
अफगानिस्तान कभी भी एक देश नही रहा ।वह लूटपाट करने वाले कबीलों का गिरोह था ।कुल सात कबीले यहां वहां लूटपाट करते रहते थे।पख्तून,हजारा, उजबेक,ताजिक,कजाक, तुर्कमान और नूरिस्तानी । पख्तून संख्या में सबसे ज्यादा करीब40% हैं और वे कट्टर सुन्नी हैं बाकी सब शिया हैं।अविभाजित भारत की सीमा मे भी वे घूसपैठ करते थे लेकिन महाराजा रणजीत सिंह के सेनापति हरिसिंह नलवा ने जब उन पर हमला किया तब उन्होंने इधर आना बंद कर दिया।
जबतक राजतंत्र रहा और जब तक जहीर शाह का राज रहा अफगानिस्तान में अमन चैन था।जहीर शाह ने ही अफगानिस्तान को कबीले वाली संस्कृति से बाहर निकाला।एक समय था कि फीरोज खान की फिल्म धर्मात्मा की शूटिंग अफगानिस्तान में हुई थी और राष्ट्रीय खेल बुजकशी देखने देश विदेश के पर्यटक आते थे
सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था कि रूस को शौक चर्राया कि अफगानिस्तान में राजतंत्र खत्म हो और कम्युनिस्ट सरकार बने।बस वहां तख्ता पलट हुआ और नजीबुल्लाह को राष्ट्रपति बना दिया गया।वह एक कठपुतली था असल बागडोर रुस के हाथ मे था
अमेरिका इसे कैसे बर्दाश्त करता? उसने नजीबुल्लाह के खिलाफ मुल्ला ऊमर को खड़ा कर दिया।और मुल्ला उमर ने अपने पख्तून कबीले के लुटेरों के साथ काबुल पर फिदायीन हमला शुरू कर दिया।
नजीबुल्लाह की सरकार गिर गई और मुल्ला ऊमर के गिरोह के हत्यारों ने नजीबुल्लाह को मारकर बिजली के पोल मे टांग दिया
यही मुल्ला ऊमर तालिबान का संस्थापक बना और 1996 से2001 तक अफगानिस्तान की सत्ता इनके हाथ में रही ।
मगर जैसे ही तालिबान की कोख से निकले अल कायदा ने अमेरिका की शान ट्वीन टावर को ध्वस्त किया ,अमेरिका आग बबूला हो गया।उसने अफगानिस्तान पर हमला कर दिया ।हालांकि उन्होंने ओसामा बिन लादेन को ढूंढ कर मार दिया मगर इसी बहाने मुल्ला उमर के साथ साथ कई तालिबानी कमांडरों को भी मार डाला। इसी बीच एक नया डेवलपमेंट ये हुआ कि रूस ने अपने पिट्ठू नजीबुल्लाह की हत्या का बदला लेने के लिए और तालिबान को मजा चखाने के लिए इरान और भारत के साथ मिल कर एक लड़ाकू दस्ता तैयार किया नार्दन एलायंस जिसमे पंजशिर के शेर अहमद शाह मसूद और उजबेक के अब्दुल रशीद दोश्तम शामिल थे।इन्होंने ही तालिबान को जमीन पर शिकस्त दिया।लेकिन अमेरिका ने गद्दारी की ।जब राष्ट्रीय अफगान सेना का गठन हुआ तो90% सैनिक पख्तून थे और मात्र10% पंजशिर के लड़ाके। अफगान सेना में सारे तालिबानी घुस गए थे।इसे ऐसे समझिए कि दक्षिणी और पूर्वी भाग जो पख्तून बहुल है वहां सेना ने बिना लड़े सरेंडर कर दिया।यहां तक कि स्पिनबोलद्क चौकी पर सरकारी बैंकों का दस करोड़ रूपया भी तालिबानियों को सौंप दिया।
अब ऐसे में अशरफ गनी क्या करते? नजीबुल्लाह की तरह बिजली के पोल से लटकते या भाग कर जान बचाते? तो वे भाग गए साथ मे1200 करोड़ रुपये भी ले गए
पैसे क्यों? तो जो भी देश उन्हें शरण देगा वह 1000 करोड़ से कम नहीं लेगा
तो मामला सामने है कि नौर्दन एलायंस के अहमद शाह मसूद ,दोस्तम को रूस और भारत का संरक्षण है, गनी को अमेरिका का और तालिबान को चीन और पाकिस्तान का
आप को क्या लगता है मामला बहुत सीधा है ?
मुल्ला बरादर कितने दिनों तक गद्दी पर रहेगा ?